Sonia Jadhav

Add To collaction

रिश्तों की राजनीति- भाग 2

भाग 2
क्लास खत्म होने के बाद सान्वी और उसकी सहेली रिया कैंटीन में चाय और वड़ा पाव खाते हुए बात कर रहे होते हैं। रिया अक्षय की तारीफ करते हुए कहती है…..कितना अच्छा लड़का है अक्षय, अगर आज वो ना होता तो अजित तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता था। वैसे देखने में किसी हीरो से कम नहीं है वो।

सान्वी कुछ जवाब नहीं देती , लेकिन वो भी मन ही मन अक्षय के बारे में ही सोच रही होती है। वो बस रिया की बातों में हाँ में हाँ मिलाती है।

रिया पूछती है.... क्या तू अभिजीत दादा को बतायेगी आज जो हुआ कॉलेज में तेरे साथ उसके बारे में?

सान्वी सिर्फ जवाब में ना कहती है। एक आखिरी क्लास अटेंड करने के बाद सान्वी रिया के साथ घर चली जाती है।

करीब 4 बजे घर पहुँचती है सान्वी और आई को चाय बनाने के लिए कहती है। आई सान्वी का चेहरा देखकर समझ जाती है कि आज कुछ तो गलत हुआ है सान्वी के साथ। आई सान्वी के माथे पर हाथ रखती है देखने के लिए कहीं उसे ताप तो नहीं। सान्वी थोड़ा चिढ़कर जवाब देती है…..मैं ठीक हूँ आई कहकर , चाय लेकर अपने कमरे में चली जाती है।

आई भी अपनी चाय लेकर सान्वी के कमरे में चली जाती है और पूछती है....क्या हुआ सानू, कुछ तो बता मुझे?

सान्वी आई के गले लगकर रोने लगे जाती है और आज कॉलेज में उसके साथ हुए हादसे के बारे में सब कुछ बता देती है। आई उसे ढाढस बंधाती और अक्षय का आभार प्रकट करते हुए उसकी तारीफ करती है। सान्वी पूछती है..... आई, दादा को बता दूँ क्या इस बारे में?

आई साफ़ मना कर देती है और कहती है....इस बारे में अभिजीत को कुछ पता नहीं चलना चाहिए। तुझे पता है अभिजीत कितना गुस्से वाला है। उसे पता चला तो वो सीधा अजित को मारने के लिए चला जायेगा। हम साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। मार-पीट, पुलिस इन सबके चक्करों से जितना दूर रहे उतना अच्छा है।

चल आज शाम को बाज़ार जाकर तेरे लिए पेप्पर स्प्रे लेकर आते हैं, उसे अपनी सुरक्षा के लिए अपने बैग में लेकर जाना रोज़ कॉलेज। इस घटना को भूल जा और अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा। किसी से ना डरने की ज़रूरत है, ना बेवजह भिड़ने की, समझी?
समझ गई आई.....

सान्वी को अपनी आई से बात करके संतुष्टि मिलती है, मानो उसके मन से कोई भारी बोझ उतर गया हो। सान्वी की आई उसके लिए आई कम दोस्त ज़्यादा थी।

शाम 6 बजे करीब अभिजीत सोकर उठता है और आवाज़ लगाता है….आई, आई।

घर में सुशील मामा की बेटी शरवरी आयी होती है और वो हंसते हुए अभिजीत को कहती है….तुम क्या छोटे बच्चे हो जो सोकर उठने के बाद सीधा आई,आई चिल्ला रहे हो।

अभिजीत चिढ़ते हुए कहता है....हाँ , हूँ बच्चा मैं अपनी आई का, तुम्हें क्या?

जब देखो म्याऊ-म्याऊ करती हमारे घर आ जाती हो।

तभी सान्वी हंसते हुए कहती है….दादा लगता है, चूहा है इस घर में, तभी यह बिल्ली बार-बार यहाँ आ जाती है।

शरवरी हँसकर सान्वी की हाँ में हाँ मिलाती है और अभिजीत चिढ़कर बाथरूम में चला जाता है।

अभिजीत और शरवरी बचपन के दोस्त होते हैं और उनमें हमेशा किसी ना किसी बात पर नोकझोंक चलती रहती थी। सब शरवरी को बचपन में अभिजीत की बायको(पत्नी) कहकर चिढ़ाया करते थे क्योंकि वो हमेशा उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी।

अभिजीत इसे बचपन का मज़ाक समझकर भूल चुका था लेकिन शरवरी के दिल में अभिजीत की बायको(पत्नी) बनने की चाह स्थायी रूप से घर कर चुकी होती है।
रात करीब 8 बजे तक अभिजीत के बाबा महेश सावंत भी ऑफिस से घर आ जाते हैं। बड़े ही सरल स्वभाव के होते हैं महेश सावंत। ऑफिस से घर और घर से ऑफिस बस यही इनकी जिंदगी थी।

घर आते ही मुँह हाथ धोकर वो अपने परिवार के साथ रात के खाने के लिए बैठ जाते हैं। आज उनकी पत्नी अर्चना ने भाकरी(ज्वारी की रोटी),भरेली वांगी(भरवां बैंगन),सादा वरन(सादी दाल) और भात(चावल) बनाया हुआ होता है।
अभिजीत भरेली वांगी जैसे ही भाकरी के साथ खाता है, वैसे ही उसके मुँह से निकलता है.....वाह आई, वांगी की भाजी क्या मस्त बनाई है।
आई हंसते हुए कहती है….यह मैंने नहीं शरवरी ने बनायी है।

अभिजीत मुस्कुराते हुए कहता है….चलो अच्छा है इसकी जिससे शादी होगी वो भूखा नहीं मरेगा, इसके हाथ का खाना खाकर खुश रहेगा। शरवरी के मन में अभिजीत था और अभिजीत के आई बाबा के मन में शरवरी को अपनी सून(बहू) बनाने की चाह थी। उन्हें अब बस यही इंतज़ार था कब अभिजीत की पढ़ाई खत्म हो और वो अच्छी नौकरी पर लग जाए ताकि वो शरवरी और अभिजीत का रिश्ता तय कर सके।

महेश सावंत खुश थे अपने छोटे से परिवार के साथ। घर आकर उन्हें जो सुकून महसूस होता था अपने बच्चों को हंसता खेलता हुआ देखकर, वो बाहर नहीं मिलता था। यूँ तो सब अच्छा ही था, लेकिन फिर भी उन्हें कभी-कभी चिंता होती थी अभिजीत की और उसके गुस्से की।

वैसे तो अभिजीत बेहद समझदार, शांत किस्म का लड़का था, अपनी पढ़ाई को लेकर भी गंभीर था। लेकिन उसकी एक ही कमज़ोरी थी कि अगर एक बार वो भड़क गया तो उसके गुस्से को संभालना बहुत मुश्किल होता था। वो कहीं गलत होता देख चुप नहीं रह पाता था। बस इसी बात को लेकर महेश सावंत कभी-कभी परेशान हो जाते थे क्योंकि वो जानते थे इस दुनिया में अच्छे से ज्यादा बुरे लोगों की भरमार है।

मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों के कुछ खास बड़े सपने नहीं होते। उन्हें चाहिये होती है एक अदद नौकरी जिससे वो अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके और एक छोटा सा घर। लेकिन इन छोटे-छोटे सपनों को पूरा करने में सारी जिंदगी घिसट-घिसट कर निकल जाती है। उनकी आँखों में एक तरफ चाहतें साँस लेती है और दूसरी तरफ दिल में चिंताएं।

रात को सभी लोग सो जाते हैं लेकिन सान्वी की आँखों से नींद कोसों दूर होती है। उसकी आँखों में आज उसके साथ कॉलेज में हुआ वाक्या ही घूम रहा होता है। उंसका दिल एक ही बात सोच रहा होता है, आज अगर अक्षय उसे अजित से नहीं बचाता तो उसका क्या होता। अक्षय का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूमने लगता है और उसे रिया की बात याद आती है…..अक्षय देखने में कितना हैंडसम है ना सान्वी और सान्वी मन ही मन कहती है….हाँ

* महाराष्ट्र में मामा की लड़की का रिश्ता बुआ के लड़के के साथ होना सामान्य बात है।

❤सोनिया जाधव

   4
2 Comments

Gunjan Kamal

18-Apr-2022 11:06 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

Reply